सुहानी ऋतु वसंती ये , लगे हर शै सुहानी है
प्रकृति श्रृंगार कर बैठी चुनरिया ओढ़ धानी है।
उठे अरमान ये दिल में, सनम जी साथ में होते।
कहूँ उनसे मगर कैसे, मुहब्बत की कहानी है।
धरा का रूप अनुपम ये अबर होता दिवाना सा।
विकल हो झाँकता जबतब प्रिया मेरी सयानी है।।
चली सरसों सखी खिलती पिया आये वसंती हैं।
सुनाये गीत कोयलिया लगे ज़न्नत दिवानी है।।
सखी महुआ हुई पागल, मटर पे क्या चमक आई.।
पहन के बैगनी साड़ी, हुई अलसी रुमानी है।
नहाया ओस से चंदन, इतर से तर बतर होता।
फ़िज़ा में फैलती खुशबू, बहारों की रवानी है।
चलो अब स्नेह चलते हैं, किसी ऐसे किनारे पर।
जहाँ डेरा हो खुशियों का अमन की जिंदगानी है।
स्नेहलता पाण्डेय 'स्नेह'
madhura
29-Jan-2023 03:03 PM
nice
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सीताराम साहू 'निर्मल'
29-Jan-2023 02:11 PM
बहुत खूबसूरत सृजन। बधाई
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Gunjan Kamal
29-Jan-2023 10:40 AM
शानदार प्रस्तुति 👌🙏🏻
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